भारत में पशुपालन व्यवसाय के रूप में भी होता है, और गाँवों में घरेलू दूध, दही, और दूध से बने उत्पाद के लिए भी पशुपालन किया जाता है। गाँवों में खासकर भैंस का पालन अधिक होता है क्योंकि गाय के दूध की तुलना में भैंस के दूध की मांग अधिक होती है, लेकिन ऐसा नहीं है कि गाय का पालन नहीं होता है। गाय का पालन भी किया जाता है।
आज हम यहाँ मुर्रा नस्ल की भैंस के बारे में बात करेंगे, जो कि आपको बाल्टी भर दूध देती है और घरेलू पशुपालन के लिए भी काफी अच्छी होती है। घर में दूध और दूध से बने उत्पादों की कमी नहीं होती है, मुर्रा भैंस को दहली, कुण्डी, और काली के नाम से भी जाना जाता है, और मुर्रा भैंस के दूध में वसा की मात्रा काफी अधिक होती है।
देश के अलावा विदेशों में भी मुर्रा भैंस की नस्ल मिलती है, और मुर्रा भैंस औसतन 12 से 15 लीटर तक दूध प्रतिदिन देती है, लेकिन अच्छे से देखभाल के चलते इनकी दूध देने की क्षमता 18 से 20 लीटर तक भी चली जाती है।
इनके दूध में पौष्टिक तत्व पाए जाते हैं, और मुर्रा भैंस के दूध में वसा की मात्रा काफी अधिक होती है। इसके साथ ही प्रोटीन और कैल्सियम की मात्रा भी काफी अधिक होती है।
वसा की मात्रा अधिक होने के कारण इसके दूध की मांग भी काफी अच्छी होती है। खासकर डेयरी फार्मिंग में इन भैंसों की नस्ल को रखा जाता है ताकि अधिक दूध उत्पादन से अच्छा मुनाफा कमाया जा सके।
घर में मुर्रा नस्ल की भैंस को रखकर भी अच्छा दूध उत्पादन किया जा सकता है।
मुर्रा भैंस की खासियत यह है कि वे वातावरण के प्रति काफी सहनशील होती हैं, और ये गर्म और शुष्क वातावरण में भी आराम से रह सकती हैं। इनका गर्भकाल 280 से 300 दिनों का होता है, ऊंचाई 130 से 135 सेंटीमीटर तक होती है, और वजन 500 किलोग्राम से 600 किलोग्राम तक हो सकता है।
एक मुर्रा भैंस अपने एक ब्यांट में औसत 2200 से 2500 लीटर तक अधिकतम दूध देती है, शरीर काफी भारी और वजनदार होता है, देखने में काफी आकर्षक लगती है, इनकी औसत आयु 25 से 27 साल तक होती है, पूंछ लम्बी और भारी होती है, जबकि चरम पतली होती है। इनका रंग गहरा काला होता है।