Indian Railway Toilet Story: ट्रेन यातायात भारत में यात्रा का एक अहम हिस्सा है, और लंबे सफर करने वाले यात्री ज्यादातर ट्रेन का सहारा लेते हैं। भारत में कई प्रकार की ट्रेनें चलती हैं, और इन ट्रेनों में विभिन्न सुविधाएं उपलब्ध होती हैं। आजकल, भारत में लग्जरी ट्रेनें भी चल रही हैं, जैसे कि वंदे भारत एक्सप्रेस, जो रेलवे यात्रियों को होटलों की तरह की सुविधाएं प्रदान करती है। लंबी यात्राओं को और भी आसान बनाने वाली ट्रेनें होती हैं, और कुछ ट्रेनें तो वास्तविकतः एक चलता-फिरता घर की तरह होती हैं।
लेकिन, इस आरामदायक और आधुनिक ट्रेन यात्रा की कहानी में एक समय ऐसा भी था जब ट्रेनों में टॉयलेट नहीं होते थे। भारत में पहली ट्रेन 1853 में चली थी, लेकिन इसके बावजूद ट्रेनों में पहला शौचालय साल 1909 में ही लगा दिया गया। आइए, हम जानते हैं भारतीय ट्रेनों में टॉयलेट की शुरुआत के बारे में कुछ दिलचस्प जानकारी।
ट्रेन में टॉयलेट की कहानी
भारतीय ट्रेनों में टॉयलेट की शुरुआत बहुत ही दिलचस्प है। 1909 से पहले तक, ट्रेन यात्रीगण के लिए टॉयलेट की कोई सुविधा नहीं थी। अगर किसी यात्री को टॉयलेट जाना होता तो उन्हें स्टेशन पर ट्रेन के रुकने का इंतजार करना पड़ता था। ट्रेन के रुकने पर, स्टेशन पर बने शौचालय में जाना होता था या फिर खुले मैदान या जंगल में जाना होता था।
हालांकि, एक दिन ऐसी घटना घटी जिसने ट्रेन में टॉयलेट की सुविधा शुरू करने की कहानी को बदल दिया। एक रेलवे यात्री द्वारा लिखे गए पत्र ने भारतीय ट्रेनों में टॉयलेट की आवश्यकता को हाईलाइट किया। उन्होंने अपनी यात्रा के दौरान ट्रेन के किनारे जाने के बाद ट्रेन को फिर से पकड़ने की कोशिश की, लेकिन वह गिर गए और उनका पत्र ट्रेन के अधिकारी के साथ पहुंचा।
आखिल चंद्र का करें धन्यवाद
भारतीय रेल में शौचालय की शुरुआत साल 1909 में की गई. शायद, इसमें भी और देर होती अगर आखिल चंद्र सेन नाम के एक यात्री का रेल में सफर के दौरान पेट न खराब होता.
पेट खराब होने की वजह से उन्हें पश्चिम बंगाल के अहमदपुर स्टेशन पर उतरना पड़ा. वे पटरियों के पास शौच करने चले गए. कुछ देर बाद गार्ड ने सीटी बजा दी और गाड़ी चल पड़ी. आखिल चंद्र सेन अपना लोटा और धोती पकड़कर भागे. वे स्टेशन पर गिर गए. उनकी धोती खुल गई और उनकी गाड़ी छूट गई. ट्रेन के गार्ड की इस हरकत की शिकायत उन्होंने लेटर लिखकर रेलवे के साहिबगंज मंडल कार्यालय से की.
ओखिल चंद्र सेन ने पत्र में लिखा, “श्रीमान, मैं ट्रेन से अहमदपुर स्टेशन पहुंचा. मेरा पेट खराब था. इसलिए मैं शौच के लिए चला गया. मैं निवृत हो ही रहा था कि गार्ड ने सीटी बजा दी, मैं एक हाथ में लोटा और दूसरे में धोती पकड़कर भागा.
मैं गिर गया और स्टेशन पर मौजूद औरतों और मर्दों सबने देखा…मैं अहमदपुर स्टेशन पर ही रह गया. यह बहुत ग़लत बात है, अगर यात्री शौच के लिए जाते हैं तब भी गार्ड कुछ मिनटों के लिए ट्रेन नहीं रोकते? इसलिए मैं आपसे अनुरोध करता हूं कि गार्ड पर भारी जुर्माना लगाया जाए. वर्ना यह खबर अखबार को दे दूंगा.”
रेलवे ने समझा यात्रियों का दर्द
ऐसा माना जाता है कि ओखिल चंद्र के पत्र के बाद ही रेलवे अधिकारियों ने ही ट्रेन में शौचालय ने होने पर यात्रियों को होने वाली परेशानियों को समझा. इसके बाद रेलवे ने 50 मील से ज्यादा दूरी तय करने वाली ट्रेनों में शौचायल बनाने की कवायद शुरू की. इस तरह ओखिल चंद्र सेन का भारतीय रेलों में टॉयलेट की सुविधा शुरू करवाने में अहम योगदान है.
लोको पायलट को करना पड़ा और लंबा इंतजार
यात्रियों को भले ही यह सुविधा 1909 में मिल गई हो, लेकिन लोको पायलटों को रेल इंजन में इस सुविधा को पाने के लिए 2016 तक इंतजार करना पड़ा. 2016 से पहले लोको में टॉयलेट नहीं थे. इसके बाद वहां टॉयलेट लगने शुरू हुए हैं.